जीत की हवस में शायद तुम ये भूल गए
की लड़ाई तुम्हारी ख़ुद से है
अपनी ही नसों में कूट कूट कर भरी अंहकार
इर्ष्या और द्वेष से तुम्हारा सामना है
हर हाल में जीत तुम्हारी हो
ये मेरे मन की चिर प्रतीक्षित कामना है
पर तुम्हारे इर्द गिर्द के टट्टू तुम्हे हमेशा
मुफ्त में उपदेश देंगे
देंगे सलाह की दुसमन दुनिया है
मेरी मानो क्रांति का वक्त आगया है
टट्टुओं से सावधान
गर चाहते हो अपनी अलग पहचान
तो आँखें खोलो और देखो कैसे
लोगों ने तुम्हरे चित को चुरा लिया है
तुम्हारे घर में ही आग लगा दिया है
और खड़ा होकर रोज देखता है बर्बादी को
देखना एक दिन तुम नंगे हो जाओगे
अपने ही राज में भिक्मंगे हो जाओगे
तब तुम्हे शायद मेरी बात याद आए
चेत जाओ इससे पहले की सब कुछ लुट जाए ....
No comments:
Post a Comment