मैं अपने आप से बहुत दूर होता हूँ
जब मन की बात सुनने पे मजबूर होता हूँ
मन करता निरंतर जो बकवास है
पुरा करने में जिसे लगा सारा प्रयास है
आदत जो उसको है पड़ी कुछ बात ऐसे हों
आदमी के अंदर जज्बात ऐसे हों
उलझा रहे वो जाल में दुनिया की चाह में
कांटे हैं बो दिए उसने जीवन के राह में
मन के इन्ही करतूत को करना समाप्त है
बाहर प्रकट वो हो जो पहले से व्याप्त है
आनंद की धारा बहे कोई न खेद हो
मेरा मुझी से अब कभी विच्छेद नही हो ..................
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