07 April, 2009

बस्तुतः येही वो पूर्ण विराम है जहाँ यात्रा समाप्त होता है...


जीवन में हर कुछ ब्लैक एंड व्हाइट नही होता

कभी कभी shades of grey भी होते हैं

चेहरे पे भले दिखती हो हँसी

मन के किसी कोने में हम फुट फुट कर रोते हैं

मुझे पता नहीं की जिन्दगी की सकरी गली में

मैं कैसे जाऊंगा अंहकार के मुकुट को पहने हुए

इसे सर से उतारने को मैं बेचैन हूँ

करो मदद मेरी की मैं पार कर सकूँ ये रास्ता

और एक हो जाऊँ उस प्रेम के प्रकाश पुंज में

जहाँ दो से परे आनंद प्राप्त होता है

बस्तुतः येही वो पूर्ण विराम है जहाँ यात्रा समाप्त होता है...

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