इज्ज़त उतर गई है टोपी उतार लो
झूठ के सहारे तुम सच को मार लो
अहंकार के पुजारी , संकीर्ण सोंच के व्यापारी
अत्याचार तुम करो और पूछो कौन अत्याचारी
बहुत सहा है हमने अब नहीं सहेंगे
तुम्हारे कैद में हम अब नहीं रहेंगे
मन से तो गिर चुके थे
नज़रों से भी गिरे हो
पागल हो तुम और
एकदम ही सिरफिरे हो
सलाहाकार है जो तेरा
तुमको डूबा ही देगा
मरना भी चाहो तुम तो
मौत न मिलेगा
खिलवाड़ दूसरो से अब कर के तो दीखाना
और जरा किसीके धैर्य को न आजमाना
इज्जत तो लुट गई है थूकेगा अब ज़माना
अब यहाँ रखा क्या काहे का आना जाना
bada himesh reshmia samajhta hai apne aap ko kya?
ReplyDelete