हर महल जिसकी बुनियाद झूठ पर टिकी होती है
एक दिन मिट्टी में मिल जाती है
और जो ख़ुद को मसीहा मान बैठा था महल में
उसके पांव तले की जमीन खिशक जाती है
राजनीति उतनी करो की न दिखे तुम्हारे अन्दर का जानवर
समझदारों के लिए मात्र इशारा काफ़ी है मान्यवर
थूक के चाटना तुम्हारा तहजीब है
सच्चे इंसान की आह भी होती अजीब है
वही आह तुम्हारे महल को मिट्टी में मिला सकती है
और badduan निकले अगर अंतर्मन से तो तुम्हारा वजूद मिटा सकती है....
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