16 April, 2009

जहाँ पर राह नही है , अपनी राह बनाओ ...................




जहाँ पर राह नही है , अपनी राह बनाओ


जब लगने लगे तुम्हे की थक गए कदम


नयी जोश जगाओ , नया उत्साह बनाओ


पंक्षियाँ कहाँ पदचिन्ह छोड़ते


आकाश में अपनी तुम पंख फैलाओ


उड्जाओ फिर वहां बंधन जहाँ नहीं


उस आसमान में जहाँ कोई निशान नही


तुमको ज़माने की क्यूँ हो कोई फिकर


जब नभ तुम्हारा है और है सभी शिखर


मुझको भी अब तेरे ही राह जाना है


अंदर जो सोया है उसे फिर से जगाना है


हर राह अब मेरी मंजिल दिलाएगी


हंसके जो जिन्दगी मुझे गले लगायेगी .









1 comment:

  1. aapki kavita bahut hi achhi hai, hindi sabdon ke sath English ke words ka prayog naya hai...

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