26 April, 2009

मौन प्रार्थना ही मात्र इबादत मेरी ..............


मुझे जब मौन का एहसास हुआ

शब्दों के परे दुनिया का आभास हुआ

तब जो चेहरे पे तेज आई थी

और वजूद मेरी मुस्कुराई थी

मैं भी परिचित हुआ अंदर के उस इंसान से

जो कहीं दब चुका था बाहरी तूफ़ान से

मेरा ये यात्रा मन के परे जाने का

जो था सोया उसे झकझोर के जगाने का

अपनी सम्भावना को फिर से आजमाने का

और जीवन को नया रास्ता दीखाने का

स्वतः ही पुरे लगे होने देखे जो थे सपने

रहा न कोई दूसरा सभी लगे अपने

हर एक बाधा जो रस्ते में चली आती थी

वही परेशानी अब मंजिल के करीब लाती थी

नज़रिया के बदलने से नज़ारा बदला

जीवन की बहती नदी का किनारा बदला

अब तो मचलती हुई सागर में मिली जाती है

नदी कहाँ अब वो सागर ही कहलाती है

मौन की दुनिया ने मुझे है विस्तार दिया

मेरे हिस्से का जो था प्यार मुझे प्यार दिया

अब आनंद बन गई है आदत मेरी

मौन प्रार्थना ही मात्र इबादत मेरी ...............






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