एक नाद सुनादे दिल मेरे
मन का मैल जो धो दे
मन के बंजर आँगन में
बिश्वास बीज जो बोदे
जो कलाबाजियां मन की
उसपे अंकुश लगादे
जो लम्बी नींद में सोया मैं
झकझोर मुझे जगादे
मैं जीत जाऊंगा जग से
तू मन को गर समझादे
की बकवास करता ये मन है
कहाँ हारता कोई इंसान
जीवन के संघर्षों में
होता कैसा अपमान
होता कैसा अपमान अपने सपनो को कर साकार
समय आगया तेरा अब उड़ना है पंख पसार
उड़ना है पंख पसार करना है नभ से बातें
वो दिल मेरे चल आज वो अंतर्नाद सुनादे ................
No comments:
Post a Comment