मैं जो चुप हूँ तो हंगामा कुछ बोलूं तो भी हंगामा
मेरे हर बात और खुशियों पे क्यूँ होता है हंगामा
विचारों पे हंगामा जज्बातों पे हंगामा
मेरे जेहन में उठती हर एक खयालातों पे हंगामा
ये हंगामे की बस्ती में कहीं क्या है कोई मेरा
जो ख़त्म कर दे बेबजह बरपा जो हंगामा
मेरा वजूद खतरे में क्यूँ की मैं बोलता नहीं
आदर्शों को बेच कर जो मचाते हो हंगामा
तुम देखना एक दिन तुम्हे एहसास ये होगा
कुंठा से भरा जब मन तेरा करेगा हंगामा .............
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