28 March, 2009

मैं बुड्ढा हो गया हूँ.......


हर साख पे बैठे उल्लू का
मैं एक मात्र रखवाला हूँ
सूरज से बचता रहा है जो
उसे सुबह दिखाने वाला हूँ
मालिक बनने का सौख जिन्हें
उनको एहसास कराना है
सबका मालिक बस एक ही है
पर तू इस से अनजाना है
चाभी की राजनीति तेरी
और घुटनों के बल चलते हो
जो मौत के साए में पलते
उनको तुम फिर क्यूँ क्षलते हो
तुम कितना भी कोशिश कर लो
फिर भी तो सुबह आएगी
एक दिन मेरे उल्लू सुन
तेरे आँखें चुन्धियाएंगी
तू जिसको रब है मान चुका
वो अंधियारे का रावण है
आँख खोल के देख जरा
ये सुबह कितना पावन है
घर में जो आग लगना है
आदर्श बेंच जब खाना है
जब झूठ ही मात्र सहारा है
जब बचा न कोई चारा है
जब रावण तुम पर हावी है
जब तेरे हाथ ही चाभी है
तो फिर क्या है अब करो मौज
तैयार करो उल्लू की फौज .......

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