27 March, 2009

इस काल कोठरी में दीप कौन जलाएगा



अन्धकार से लड़ना नहीं होता

एक दीप जलाना ही हल है

अंतर्मन के कलुष को गर पहचान लो

तो येही उसके विलीन होने की पहल है

मन बकवास करता है

सत्यानाश करता है

तुम्हारे विवेक का

तुमभी उसकी बातों में आकर

दूसरो को नीचा दिखाते हो
वस्तुतः जीवन के पायदान पे

तुम सबसे नीचे हो जाते हो

क्यूंकि इश्वर तो तुम हो नही

हो तुम भी उसीकी रचना

तो फिर क्यूँ ये अभिमान

की दुनिया मुर्ख सयाना मैं

तुम्हारा ये दंभ जानलेवा है

क्यूंकि दीप तुम्हे जलाना है

कोई और नहीं आएगा

प्रश्न ये है की इस काली कोठरी

में दीप कौन जलाएगा............

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