अन्धकार से लड़ना नहीं होता
एक दीप जलाना ही हल है
अंतर्मन के कलुष को गर पहचान लो
तो येही उसके विलीन होने की पहल है
मन बकवास करता है
सत्यानाश करता है
तुम्हारे विवेक का
तुमभी उसकी बातों में आकर
दूसरो को नीचा दिखाते हो
वस्तुतः जीवन के पायदान पे
तुम सबसे नीचे हो जाते हो
क्यूंकि इश्वर तो तुम हो नही
हो तुम भी उसीकी रचना
तो फिर क्यूँ ये अभिमान
की दुनिया मुर्ख सयाना मैं
तुम्हारा ये दंभ जानलेवा है
क्यूंकि दीप तुम्हे जलाना है
कोई और नहीं आएगा
प्रश्न ये है की इस काली कोठरी
में दीप कौन जलाएगा............
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