30 March, 2009

मेरे हांथों को उस मोड़ पे थामा तुमने ..............


मेरे हांथों को उस मोड़ पे थामा तुमने

जहाँ पे लड़खरा रहे थे कदम मेरे

मुझे पता नहीं था होगी हंसीं जिंदिगी इतनी

बन गए हो जब तुम अब हमदम मेरे

मेरे रस्ते बहुत कठिन थे और पथरीले

तुम आए ऐसे कोई जलश्रोत मरुभूमि में मिले

मेरे संघर्ष की तुम ही तो बस गवाही हो

मुझे मिली है हर खुशी जो मैंने चाही हो ..............


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