चक्रव्यूह की रचना तुम करो 
अभिमन्यु इस बार छल से मरने वाला नहीं
माँ को इस बार नींद नही आयी और 
अभिमन्यु को ज्ञात है खंडित कर देगा 
तुम्हारी इस पाखंड के विसात को 
और तुम बाल भी बांका नही कर पाओगे 
क्यूंकि जिसके ऊपर उसका हाथ होता है
उसे ऊँगली नही करते , उलटी गिनती शुरु हो गई है
फूटने वाला है तुम्हारे अंहकार का घड़ा 
जय हो की गूँज सुन रहा मैं 
तुम्हे स्राधांजलि अर्पित करता हूँ 
तुम जिसे चक्रव्यूह मान बैठे योजना बनते हो 
मैं उसके चक्कर में नहीं अब बिल्कुल पड़ता हूँ.........
No comments:
Post a Comment