सच को दिया दबाय
सत्ता के गलियारे
में तो मचा है हाय हाय
देश का बंदरबांट हो रहा
नित योजना नयी बना के
जनता को ठग रहे निरंतर
सब्ज़ बाग़ दिखलाके
समाचार भी सही कहाँ है
हावी हैं सताधारी
छद्म सेक्युलर कहलाने की
होड़ में मारामारी
जो सरकार को था करना
अब न्यायालय करती है
फिर भारत निर्माण का
कैसे ये दंभ भरती है
जल जंगल ज़मीन का सौदा
अन्धाधुन है जारी
देश विकास के पथ पर है
कहते आंकड़े हैं सरकारी
हम तो बस युहीं मौन हैं
पर अब चुभती खामोशी
अब लगता मुझको भी है
की मैं भी तो हूँ दोषी
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