31 July, 2013

एक मात्र लक्ष्य

अफ़सोस नहीं मुझको इंसान होने का
बस खेद है ह्रदय में बेजुबान  होने को
उठाया नहीं आवाज़ अन्याय देख कर
कोई  अपना नहीं है ये असहाय देख कर

'क्या फ़र्क पड़ता है ' मैं ये सोंचता रहा
अंतर्मन का अंतरद्वंद कचोटता रहा
अपने ही विचारों को जो गुलाम आदमी
आ सकेगा क्या किसी के काम आदमी

गेहूँ की लड़ाई में कुरबां गुलाब है
दोनों में समन्वय हो मेरा ये ख्वाब है
तिनके का सहारा सही, बनूँगा मैं अवश्य
आ सकूँ किसी के काम, मेरा एक मात्र लक्ष्य





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