जब कुछ समझ न
आये मैं हूँ आम आदमी
अपनी उधेड़ बुन में मैं
गुलाम आदमी
सत्ता से पराजित हुआ गर शख्स कोई है
उसी प्रतियोगिता का मैं परिणाम आदमी
किसको कहें सरकार, सरकार कहाँ है
जो छुले ह्रदय को वैसा प्यार कहाँ है
सुकून जो ख़रीद सकूँ इस जहान में
कोई तो बतादे वो बाज़ार कहाँ है
कहाँ है वो आकाश कभी जो था नीला
हम फेफड़ों में भर रहे वायु विषैला
पानी का पीलापन अब दिखती है आँखों में
भारत निर्माण का कैसा है ये सिलसिला
जरूरतों के पदानुक्रम (Hierarchy of needs)
के निचले पायदान पर
टकटकी लगाए हुए हम आसमान पर
पुकार रहे तुमको समाधान चाहिए
फेके हुए चंद टुकड़े रोटी के नहीं मंज़ूर
वापस मुझे अब मेरा सम्मान चाहिए
आये मैं हूँ आम आदमी
अपनी उधेड़ बुन में मैं
गुलाम आदमी
सत्ता से पराजित हुआ गर शख्स कोई है
उसी प्रतियोगिता का मैं परिणाम आदमी
किसको कहें सरकार, सरकार कहाँ है
जो छुले ह्रदय को वैसा प्यार कहाँ है
सुकून जो ख़रीद सकूँ इस जहान में
कोई तो बतादे वो बाज़ार कहाँ है
कहाँ है वो आकाश कभी जो था नीला
हम फेफड़ों में भर रहे वायु विषैला
पानी का पीलापन अब दिखती है आँखों में
भारत निर्माण का कैसा है ये सिलसिला
जरूरतों के पदानुक्रम (Hierarchy of needs)
के निचले पायदान पर
टकटकी लगाए हुए हम आसमान पर
पुकार रहे तुमको समाधान चाहिए
फेके हुए चंद टुकड़े रोटी के नहीं मंज़ूर
वापस मुझे अब मेरा सम्मान चाहिए
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