29 July, 2013

साहित्य के भी रण में शंखनाद चाहिए

कलम है विद्रोही
कागज़ नाराज़ है
कैसे हो समन्वय
दुर्लभ ये काज है

स्याही की बगावत
की कागज़ अछूत है
विचारों में चक्रवात
पुख्ता सुबूत है

क्या सत्य को कभी
करोगे व्यक्त तुम
या छलते  रहोगे
हमें प्रेमराग से
अब हार गया हूँ तेरे
दूषित दिमाग से

चेतावनी मेरी
आगे जो लेखनी
कलम उठे तो सत्य की ही बातचीत हो
दिमाग का नहीं कलुषित गणित हो
सभी `वाद ` से परे (जातिवाद , धर्मवाद, आतंकवाद) संवाद चाहिए
साहित्य के भी रण  में  शंखनाद चाहिए



 

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