आक्रोश काव्य है
और काव्य है मेरे
मन के भाव आवेष
मेरे विचारों की कड़ी भी एक काव्य है 
अंतर्नाद ह्रदय की भी काव्य का है रूप 
अस्तित्व मेरी भी तो काव्य मात्र है
सृजन विनाश की एक अक्षय पात्र है 
अमृत है विष भी है प्रारब्ध में मेरे 
वही झलकता है हर शब्द में मेरे 
मेरी हर एक कृति अभिव्यक्त भाव हैं 
इश्वर के शब्दकोष का ही ये प्रभाव है 
की भाव शब्दों  के परे सागर विशाल है 
जो है महत्वपूर्ण बस अंतराल है ........
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