08 July, 2013

अंतराल

 होश काव्य है


आक्रोश काव्य है


और काव्य है मेरे


मन के भाव आवेष


मेरे विचारों की कड़ी भी एक काव्य है


अंतर्नाद ह्रदय की भी काव्य का है रूप


अस्तित्व मेरी भी तो काव्य मात्र है


सृजन विनाश की एक अक्षय पात्र है


अमृत है विष भी है प्रारब्ध में मेरे


वही झलकता है हर शब्द में मेरे


मेरी हर एक कृति अभिव्यक्त भाव हैं


इश्वर के शब्दकोष का ही ये प्रभाव है


की भाव शब्दों  के परे सागर विशाल है


जो है महत्वपूर्ण बस अंतराल है ........























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