अब तो हर रोज़ कोई घटना झकझोरती है
जो है विश्वास अंतर्मन में उसे तोड़ती है
कहाँ वो देश जहाँ जवान और किसान की जय
कहाँ ये देश जिसे नित नए अपमान का भय
जब ज्ञात हो समस्या समाधान तो हो
क्यूँ भविष्य की चिंता पहले वर्तमान तो हो
रोटी की जगह तुम धर्म और जाति देखो
हो रहा जो उसे बेशर्म की भाँती देखो
दलों के दलदल में देश पे संकट भारी
घाव देके, मरहम पर सबसिडी की तैयारी
आज क्रायिसीस का डेमो देना डेमोक्रेसी है
यही प्रजातंत्र की परिभाषा बनी स्वदेशी है ..
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