20 January, 2009

आज मन के परे जाना है


आज मन के परे जाना है

और ये मन को भी बताना है

की ये तेरा रोज के नाटक से मैं परेशान सा हूँ

अपने ही सहर में मैं अनजान सा हूँ

पता नही तू कभी खुश भी क्या हो पायेगा

गर तू चुप हो तो मेरा भला हो जाएगा

पर मैं जानता हूँ तू बना नादान सा है

मेरे जो पुरे न हुए वो अरमान सा है

मेरी खुशी के खातिर तुम्हे चुप होना है

मैंने पाया है क्या तुझसे जो अब वो खोना है

तेरा चुप होना ही सच में मेरी आजादी है

ये वो बात है मैंने तुमको भी बतलादी है

तो मेरे मन तेरे मरने का इंतज़ार मुझे

मौत के बाद वचन है न आंसू आयेंगे

येही बलिदान मेरे जीवन में खुशी लायेंगे .





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