दोस्ती हमने भी की है और निभाए यारी भी
इसकदर मैं था समर्पित दोस्ती थी प्यारी भी
पर एक अंहकार की जो हवा चल गयी
दोस्तों की दोस्ती यार मुझको खल गई
क्या पता था उनके मुख से रोज गाली खाऊँगा
भीड़ में भी होकर एकदम अकेला हो जाऊँगा
मैंने न प्रतिकार की न किया कोई विरोध
कैसे है ये लड़ाई कैसा है ये प्रतिशोध
मूंछ न दाढी है जिनकी राजनीती वो कर रहे
मिलता क्या इनसे उन्हें है जाने क्यूँ वो लड़ रहे
आग ऐसी है लगायी भस्म ख़ुद भी होजाएंगे
डूब के जो मरना हो चुलू भर पानी न पाएंगे
ऐसी आत्मा को प्रभु तुम शान्ति प्रदान कर
इनके हाथों से किसीको और न बलिदान कर.
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