मौन से प्रतिस्फुटित शब्दों की श्रंखला
जब भावनाओ के बाँध तोड़ जाती है
मेरे विचार से वही काव्य कहलाती है
जब जज्बातों के चौखट से सजी शब्दों
की दुल्हन निकलती है
मेरे विचार से वही कविता में ढलती है
जब मन का आक्रोश तांडव करता है
और खंडित होता है वीवेक
तभी काव्य का होता है मस्तकाभिषेक
जब स्वयं कलम चलती है
कागज़ भी लिखवाने को मचलती है
तब जब कवि हृदय व्याकुल हो रोता है
मेरे विचार से वही काव्य होता है.
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