चलो उस राह पर चलें जहाँ हर मोड़ मंजिल हो
जहाँ न हो कोई गम और न कोई महफ़िल हो 
हो जहाँ मन मौन उस राह जाना है
ग़मों को छोड़ कर kuch naya अब गुनगुनाना है 
कहीं रुकना है नही, न कहीं डेरा जमाना है 
जीवन के इस बिसात पर नया कुछ आजमाना है 
तुम अगर साथ हो मेरे तो फिर किस बात का है गम 
तुम्हीसे तो मेरा रिश्ता यहाँ सबसे पुराना है
तुम जानते हो सब फिर भी तुमको बताना है 
की पीछे मेरे पड़ा ये जालिम जवाना है 
मैं हूँ नही वो मौज जो खो जाये सागर में 
चट्टानों से टकराकर भी साहिल को तो पाना है...
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