18 January, 2009

हार से डरना क्या जब नाम ही जीत है.................









हार से डरना क्या जब नाम ही जीत है




मेरे स्वाभाव से सारा रणभूमि परिचित है




कर्ण है आदर्श मेरे मैभी हूँ उनसा सबल




दानवीर मैं ही हूँ देदे जो फिर कुंडल कवच




छल से गर लड़ना है तुमको हार भी मेरी जीत है




तुम कहो जायज़ सभी ये रन भूमि की रीत है




मेरा क्या खोने को है जो खो दूँ मैं अपना चरित्र




मेरे ह्रदय का रोम रोम है आज भी उतना पवित्र










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