अभिमन्यु के तरह चक्रवियुह में नहीं चाहता जाना मैं
जहाँ मेरे अपने मुझे बेदर्दी से मार देंगे और करेंगे अपना महिमामंडन
कहलायेंगे वीर
मैं तो करना नहीं चाहता कोई युद्ध क्यूंकि होता कहाँ इसमे धरम
मौत के नाच का दर्शक भी नहीं बनना चाहता मैं
तुम इसे कायरता कहोगे और मैं प्रतिकार नहीं करूँगा
क्यूंकि परिभाषाएं भी तुम देते हो और तय करते हो नियम युद्ध के तुम्ही
ऐसे में मैं मौन रहता हूँ और तुम समझते हो अपनी जीत इसे
गर तुम कुछ कदम साथ चलते तो नम होती आँखें तुम्हारी भी
बदलती तुम्हारी धारणाएं और शायद तुम समझ पाते की अंहकार तुम्हारा
कितना है घातक जो दूसरो के वजूद को मलिन करता है
हर पल तुम्हारऐ हांन्थों कोई न कोई अभिमन्यु मरता है .
marvelous श्रीजन शीलता baba
ReplyDeleteJai ho jai Ho..............
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