10 January, 2009

सवेरा


गर मुर्गा बांग नही दे फिर भी हो ता है सवेरा

फिर काहे का झगडा काहे का तेरा मेरा

डुगडुगी बजाता मदारी और मेला यह संसार

पर हर इंसान ये सोंचे उसके कंधे सब भार

उसके कंधे सब भार वही है सब का तारनहार

यही सोंच सब होता गोरख धंधा और व्यापार

पर तू तो है अंतर्यामी मुर्गे को ये बतलादे

कल फिर सूर्योदय होगा तू बांग दे या न दे

फिर ठंडी हवा चलेगी बगिया में खिलेंगे फूल

होगी चहल पहल और बच्चे जायेंगे स्कूल

फिर मन्दिर घंटी बजेगी और मस्जिद में होंगे नवाज

तेरी लाठी में है दम दिखला दे प्रभु तू आज

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