गर मुर्गा बांग नही दे फिर भी हो ता है सवेरा
फिर काहे का झगडा काहे का तेरा मेरा
डुगडुगी बजाता मदारी और मेला यह संसार
पर हर इंसान ये सोंचे उसके कंधे सब भार
उसके कंधे सब भार वही है सब का तारनहार
यही सोंच सब होता गोरख धंधा और व्यापार
पर तू तो है अंतर्यामी मुर्गे को ये बतलादे
कल फिर सूर्योदय होगा तू बांग दे या न दे
फिर ठंडी हवा चलेगी बगिया में खिलेंगे फूल
होगी चहल पहल और बच्चे जायेंगे स्कूल
फिर मन्दिर घंटी बजेगी और मस्जिद में होंगे नवाज
तेरी लाठी में है दम दिखला दे प्रभु तू आज
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