मैं सुदामा तुम कृष्ण हो और आज मैं आया हूँ तुम्हारे पास
जानते हो इस बार कुछ भी नहीं है देने को तुम्हे
सिवाए इस विचार के की मांगने से कहाँ कुछ मिलता है
देते तो तुम हो हमेशा बस अब वो आँखें दे दो जो देख सके
इस संसार के परे उस सोर्स को जहाँ से सब कुछ आता है
क्योकि मन तो हमेशा श्रोत को भूल साधन में उलझ जाता है
कवि हृदय जीत
No comments:
Post a Comment