16 January, 2009

दोस्त कौन , कौन दुश्मन कौन सच्चा मीत है


दोस्त कौन , कौन दुश्मन कौन सच्चा मीत है

किसके संगत में जहर है और कौन अमृत है

पाखंडी दोस्त से होता है दुश्मन तो भला

ऐसे दोस्त कैसे हो जो दबोच दे तेरा गला

बच के रहना गिरगिटों से कब बदलदे अपना रंग

कैसे रख सकते इन पागल कुत्तों को तुम अपने संग

देखना एक दिन कहीं न तुम पे ही झपट पड़े

और इनके रूप में छुपे हैं अनेक कपट बड़े

ये हैं वो जो लाश पर तेरी बनायेंगे महल

आगया वो वक्त है कर दो कोई नयी पहल

फिर न कहना उसके मेरे पर बहुत एहसान हैं

दुश्मनों के लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान हैं .


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