11 January, 2009

मैं बिस्तार पाना चाहता हूँ

मैं बिस्तार पाना चाहता हूँ
जो निराधार है उसका आधार पाना चाहता हूँ
उड़ना चाहता हूँ पंखो को फैलाकर
चाहता हूँ करना आकाश से संवाद
पिंजडे को तोड़ होना चाहता हूँ आजाद
दोस्त करो कुछ ऐसा जैसा जामवंत ने किया था
और हनुमान के अन्दर की शक्ति जाग गई
और किया उसने नभ उदघोष
तोड़ दो लम्बी निंद्रा मेरी, रह जाए न ये अफसोश .

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