मैं बिस्तार पाना चाहता हूँ 
जो निराधार है उसका आधार पाना चाहता हूँ 
उड़ना चाहता हूँ पंखो को फैलाकर
चाहता हूँ करना आकाश से संवाद
पिंजडे को तोड़ होना चाहता हूँ आजाद 
दोस्त करो कुछ ऐसा जैसा जामवंत ने किया था 
और हनुमान के अन्दर की शक्ति जाग गई 
और किया उसने नभ उदघोष 
तोड़ दो लम्बी निंद्रा मेरी, रह जाए न ये अफसोश .
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